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श्री हनुमान जी की आरती

श्री हनुमान जी की प्रसिद्ध आरती ‘आरती कीजै हनुमान लला की’ की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। यह आरती भक्तों के ह्रदय में शौर्य और भक्ति जगाती है; जो इसे नियमित गाता है, उसे संकटों से मुक्ति मिलती है और बैकुंठ की प्राप्ति होती है। ऐसी सर्वत्र मान्यता है।

श्री हनुमान जी की आरती के लिये उनकी मुर्ति के सामने अर्पित आरती की थाली और जलता दीपक

श्री हनुमान जी की आरती: आरती कीजै हनुमान लला की

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुध लाए॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥

बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावै। बसहिं बैकुंठ परमपद पावै॥

लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

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